मैथिलीशरण गुप्त की कलम से प्रस्तुत है- अरे भारत! उठ, आँखें खोल, उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल! अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है, पल पल है अनमोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल॥