आज फिर भीग कर आई है हवा। लगता है कहीं वफ़ा बरस रही है। गरज रहे हैं ज़ज़्बात बादलों के जैसे। बिजली एहसासों की कड़क रही है। चमकते हुश्न का चकाचौंध भारी है। इश्क़ नहीं बुल-हवस का दौर जारी है। खुली आँखों से ख़्वाब देखता रहता हूँ। कच्ची डोर लेकिन मैं खींचता रहता हूँ। ग़नीमत तो ये है कि तुम राही हो "पाठक"। मन्ज़िल मिलेगी रास्ते भी तकमील होने है। शुभरात्रि साथियो....😊💐💐💐 कठिन शब्दार्थ- बुल-हवस - इच्छाओं का लालच #तकमील - समाप्त ( पूर्ण ) #पाठकपुराण 🙏😊🍀🍀🍁🍁🍂🍀 #collabwithकोराकाग़ज़