मानव का मूल स्वभाव धरा भूमि के राही हम करते यत्न और प्रयत्न कुछ गलती कर जाते ऐसे जिसका न कोई संयंत्र फिर भी हम करते है निशदिन अपने पथ की खुद पुजा संग कोई रहे न रहें बस शाश्वत कर्म सगे दुजा हर मानव मे है ये गुण कि सीखता अपनी गलती से पर मां एक ऐसी कृति है जो गलती न करती गलती से उसने जो कुछ किया गलत उसके नुकसान से वाकिफ है इसलिए अपनी संतति को उस ओर न जाना चाहती है प्रेम अगन सबके मन मे समान रूप से जलता है कोई सह लेता इसको कोई बुझने नहीं देता है जीवन क्षणभंगुर है इतना कब क्या से क्या हो जाता है खिलता चेहरा लगता प्यारा पर पलभर में मुरझाता है आओ हम बस एक यत्न करें सब साथ रहें घुलमिल कर खुशियाँ बांटें नव नव नीत सबके स्नेहिल गले मिलकर।। राघव रमण #मानव_स्वभाव