धुंधला-सा चांद अनगिनत ये सितारे एक टक होकर ये धरती को निहारें ये बगिया ये फूल ये मोहक खुशबू ये पक्षी जो बैठे हैं नदिया किनारे धरती पर आना तो चाहते हैं सारे पर आसमां का कर्ज़ ये कैसे उतारें तकते हैं ये रहते हैं टकटकी लगाए शांत समंदर में जैसे खुद को निहारें हर शाम सभा में सब ये ही विचारें सुबह तक का ही वक़्त है पास हमारे आसमां से नाता भला तोड़ें तो कैसे फलक को छोड़ें भला किसके सहारे हो गया सवेरा पक्षी सारे उठके पुकारें सूरज क्षितिज के एक छोर को संवारे अधूरी सी चाहत लेकर सभी सभागण सरकते हैं अब क्षितिज के दूसरेे किनारे #अटूट_नाता