शायद तुम्हारी आदतों की तरह शायद बदल गया है पल और लम्हा शायद सुहानी शाम का वो मंज़र शायद नजर को भा चुका हो अक्सर शायद मुझे तुम्हारी याद के वो बादल करने लगेंगे बेवजह हि पागल शायद बदल दू हर तुम्हारी आदत खैर मगर रहने दो तुमको अब मान चुका मै आखरी मोहब्ब्त अता