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सोचती हूँ तेरे गम के सहारे, अपना एक कारवां बनाऊँ,

सोचती हूँ तेरे गम के सहारे,
अपना एक कारवां बनाऊँ,
तेरी यादों के हर एक पहलू से जुड़ी,
एक कठपुतली उसमे सजाऊँ।।
बैठ समुन्दर के किनारे,
उस कारवाँ को मैं,
अपना हाल-ए-दिल सुनाऊ,
इसी बहाने मैं कुछ वक़्त सिर्फ तेरी कहलाऊँ ।।
जब तू रूठे तो,
मैं उस कारवां को मनाऊ,
बात फिर वही,
उन कठपुतलियों में मैं तुझे जीना चाहूँ।।
अंजान सी एक डगर पर,
उस कारवां संग निकल जाऊं,
तू तो साथ देगा नही,
शायद कठपुतलियों को अपना गम सुनाकर,
मैं उनमे जान फूंक पाऊं।। #tere hum k sahare
सोचती हूँ तेरे गम के सहारे,
अपना एक कारवां बनाऊँ,
तेरी यादों के हर एक पहलू से जुड़ी,
एक कठपुतली उसमे सजाऊँ।।
बैठ समुन्दर के किनारे,
उस कारवाँ को मैं,
अपना हाल-ए-दिल सुनाऊ,
इसी बहाने मैं कुछ वक़्त सिर्फ तेरी कहलाऊँ ।।
जब तू रूठे तो,
मैं उस कारवां को मनाऊ,
बात फिर वही,
उन कठपुतलियों में मैं तुझे जीना चाहूँ।।
अंजान सी एक डगर पर,
उस कारवां संग निकल जाऊं,
तू तो साथ देगा नही,
शायद कठपुतलियों को अपना गम सुनाकर,
मैं उनमे जान फूंक पाऊं।। #tere hum k sahare