बहुत चाहता है मन फिर से गुजरे जिंदगी उन्हीं रास्तों पर इस बार हम संभलकर नहीं चलना चाहते हैं बेफिक्र होकर मन में मलाल रहा कभी देख ना सके दिल दरिया में बहकर सफेदपोश ही धोखा देते हैं बड़ी बेशर्मी से कसम से कहकर सखी बुढ़ापे के पैरों से जवानी जितना दौड़ना चाहते हैं अब तबियत से दगाबाजों के हौंसले मरोड़ना चाहते हैं बबली गुर्जर ©Babli Gurjar मन