ज़िन्दगी की इक हकीकत से रुबरु कराते हैं आओ तुम्हें मोहब्ब्त की इक दास्तां सुनते हैं। बचपन में जब खेलते थे तो सब अच्छे और एक थे जब थोड़े बड़े हुए तो school की दीवानगी में आ गए पहले हुई मोहोब्बत उनसे घण्टों खेतों में खड़े रातें जाग कर उनके साथ relation में आ गए बीता वक़्त,, थोड़े और बडे हुए स्कूल से दूर कॉलेज की आवारगी में आ गए वो स्कूल की मोहब्ब्त किस्मत से कॉलेज में साथ थी तो किसी और को देखने के ख्वाब भी मिट गए कॉलेज खत्म होते होते उस मोहब्ब्त के खत्म होने के पल भी आ गए जो इश्क़ कल तक सिर्फ बेशुमार मुझसे था उन्हें आज किसी और से ब्याह के चले गए हम बिखरे टूटे ख़्वाबों में बस खुदको समेटते रह गए सम्भाल कर जैसे तैसे ज़िन्दगी में आगे बढ़ गए अब नौकरी करते हुए फिर किसी ओर से दिल लगा गए वही साथ रहना , घण्टों बाते करना रातों को जागना इन सब बातों के सिलसिले चालू हो गए कुछ समय के बाद हमारे झगड़े बढ़ गए हमसे ज्यादा कहीं और उनके दिल जुड़ गए चाय से मक्खी की तरह निकाल फेंका उन्होंने हमें हम फिर टूटे दिल, नमी भरी आंखों से तकते रह गए फिर उठ खड़े हुए इक बार ये सोच कर इश्क़ मोहब्ब्त से अब हम दूर हो गए किसी ने फिर दस्तक़ दी टूटे दिल को फिर जोड़ने की फरमाइश की न कोई राज न कोई गिला शिकवा पाक मोहब्ब्त के लिए हम साथ चल दिये फिर वो सिलसिले प्यार के आगे बढ़े पहले प्यार के एहसास फिर जागने लगे वो सिर्फ मेरी है बस इसी बात का गुरुर करने लगें बितानी है ज़िन्दगी अब साथ ही सोच कर नए पल बुनने लगे वक़्त ने करवट कुछ यूँ बदली हम चन्द पलों में ज़िन्दगी गवा बैठे बसर करना था जिनके साथ हर सवेरा हम उन्हें तन्हा छोड़ दुनियाँ को अलविदा कर बैठे। ©Priya Singh #LoveStory #must_read_everyone Plz tell me ur thoughts about my poem