शब्द दिल की वेदना को व्यक्त जब भी कर न पाएँ। चल हृदय से कंठ पर आकर अचानक ठहर जाएँ। होठ हों कम्पित विषम उस वेदना को सह न पाएँ, तब कहो उन वायदों को हम भला कब तक निभाएँ।। ✍️परेशान✍️ ©Jitendra Singh #kabtaknibhayen