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वक्त के सिलवटों को पढ़ते-पढ़ते, आंखें कब लग गई..

वक्त के सिलवटों को पढ़ते-पढ़ते, 
आंखें कब लग गई..
और कब आंखें खुली...
पता चला कि मैं...
अभी सो कर उठा हूँ।
आज लम्हों से गुज़ारिश है,
ऐ मेरी तन्हाई !
ऐ मेरे जिंद-ए-ग़म-ओ-विसात,
शिद्दतें हो गई तुम्हें भुलाते-भुलाते।
मगर अफ़सोस ये है तुम्हें भुला न पाया।
सांसों में कहर बनकर कब तक रहोगी,
कब तक मुझे जिंदादिली से, 
यूं महरूम रखोगी।
कभी न कभी लौट कर, 
एक दिन जरूर आओगी । -'राजीव'

©Rajiv
  ऐ जिंदगी!
rajivkr7739

Rajiv

Bronze Star
New Creator

ऐ जिंदगी! #कविता

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