प्रिय, बिन तुम्हारे जिंदगी अमावस , ना कर अलंकार ना कोई रस, झुमका ,बिछिया और महावर, कैसे जताऊं अब इन पर हक, शीतलता तुम्हारे अधरों की, इम्तिहान लेती मेरे सब्र की, नयन तुम्हारे मुझे निहारे, जीवन में फिर ये लम्हे पधारे, हो तुमसे आलिंगन, संग तुम्हारे हो पूरे स्वप्न, हो मुकम्मल तुम्हारे केशो की झलक, फिर से सुनू तेरी चूड़ियों की खनक, सिंदूर और बिंदिया तेरी देख मैं खिल जाऊँ पैरो की पायल तुझे मैं पहिनाऊ फिर से खुशिया पाए हम ,जैसे ऋतु बसंत, इच्छाए तो प्रिय तुमसे वैंसे हैं अनंत, ....... #जलज राठौर प्रिय, बिन तुम्हारे जिंदगी अमावस , ना कर अलंकार ना कोई रस, झुमका ,बिछिया और महावर, कैसे जताऊं अब इन पर हक, शीतलता तुम्हारे अधरों की, इम्तिहान लेती मेरे सब्र की, नयन तुम्हारे मुझे निहारे,