क्या हाल हो गया है मेरे वतन का, सूख़ रहा गुनचा गुनचा चमन का ।। तन्हा मासूमो को शिकार बनाया जाता है, मज़हब के नाम पर हथयार उठाया जाता है।। सियासी दंगो में होते हैं खून खराबे चारो तरफ़ चीखो के हैं शोर शराबे।। मसूम बच्चीयो की लूटा जाता है बेदर्दी से इन्हे नोच के ज़ालिम खाता है।। हम खाली बैठे तमाशा देख रहे है अमन -ओ- सुकूं जला कर हाथ सेक रहे है ।। कहीं किसान के बचचे खुशियो से दूर हैं वतन का पेट भरने वाले खुदखुशी को मजबूर हैं ।। ना जाने कब मेरे वतन के हलात सुधरेंगे मुरझाये गुलिस्तान फिर नयी बहरो से निखरेंगे ।। वतन में रहने के लिए क्या ज़रूरी हैं नारे लगाना नरा तो छोटी बात है हम अपनी जान भी दे देंगे ।। न नोचने देंगे अब किसी मासूम की इज़्ज़त ज़लिम के लिए मौत का फरमान दे देंगे ।। #मेरावतन Nawab Khan