ढूढा करता हूँ तुझको मैं दर-बदर, गाँव की हर गली और शहर-शहर, लग रही है शब एक सदी के जैसी, होगी न जाने कब ये सहर-सहर|| तू नहीं मिल रही है मुझे तो कहीं , जाने टूटा येकैसा रामजी का कहर, चाँद -तारे जमीं को निहारे हैं रोज़, मै निहारू तुझे होगी कब ये महर, उदासी दिल की अब तोे तू समझ, तेरे आने से आयेगी खुशी की लहर, स्याह लगती है बिन तेरे रोशनी भी, कुछ न सूझे मुझे जाऊ किस डगर, टूट गया "शील" है बिखरने की देर, आ लगजा गले या भिजवा दे ज़हर|| ©sheel shahab #भिजवादेज़हर #internethockey #ravinandantiwari #alkatandon #sunilkumarsharma #POOJAAGGRWAL #rohitsurya