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संसार मेरा अक्षर में ही ठहरा सांझ, दुपहरी, और भोर

संसार मेरा अक्षर में ही ठहरा 
सांझ, दुपहरी, और भोर सुनहेरा
बुझ लूं तुमको–तुम कोई पहेली
हाय, मैं अबोध नासमझ सहेली!

प्रेम निषिद्ध नभचर सी पाखी,
मैं अनपढ़ सी, अल्हड़ सी साथी।

(पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े..!) पूर्ण कविता

हर दिन सा तुमको पत्र लिखा है,
मेरे जीवन का हर चित्र लिखा है,
जिस सांझ के संग तुम्हें ढूंढती हूं,
उस सांझ को मैंने मित्र लिखा है।

बिन स्याही जीवन अल्पत सी साथी,
संसार मेरा अक्षर में ही ठहरा 
सांझ, दुपहरी, और भोर सुनहेरा
बुझ लूं तुमको–तुम कोई पहेली
हाय, मैं अबोध नासमझ सहेली!

प्रेम निषिद्ध नभचर सी पाखी,
मैं अनपढ़ सी, अल्हड़ सी साथी।

(पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े..!) पूर्ण कविता

हर दिन सा तुमको पत्र लिखा है,
मेरे जीवन का हर चित्र लिखा है,
जिस सांझ के संग तुम्हें ढूंढती हूं,
उस सांझ को मैंने मित्र लिखा है।

बिन स्याही जीवन अल्पत सी साथी,
amargupta4255

amar gupta

New Creator

पूर्ण कविता हर दिन सा तुमको पत्र लिखा है, मेरे जीवन का हर चित्र लिखा है, जिस सांझ के संग तुम्हें ढूंढती हूं, उस सांझ को मैंने मित्र लिखा है। बिन स्याही जीवन अल्पत सी साथी, #प्रेम #yqbaba #हिंदी #yqdidi #yqhindi #bestyqhindiquotes #paidstory #कालजयी_श्रुति