ज़ुबां देखता हूँ मुल्क़ की फ़िज़ा देखता हूँ शरारतें मुहब्बत की अंदाज़ ए बयां देखता हूँ . तुम क्या देखते हो फ़र्क़ नही पड़ता मुझको मैं खुद को देखता हूँ देखते तुम्हें देखता हूँ . रिश्तों की बुनियादों की वो घिसी पिटी दास्तां दुहाई देते देखता हूँ फरियाद होते देखता हूँ . कसमें देखता हूँ वादे देखता हूँ इज़हार भी इंकार भी अक़्ल देखता हूँ फिर पत्थर पड़ते उस पे देखता हूँ . आ बदजुबानी कर ले मेरे साथ भी आजमा ले कहा न ज़ुबां देखता हूँ मुल्क़ कि फ़िज़ा देखता हूँ . धीर क्या देखता है क्या तुम देखते हो , देखा करो मैं तुम में खुद को देखता हूँ तुमको मैं होते देखता हूँ . धीर देखता हूँ