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#OpenPoetry बात... बेइंतेहा मोहब्बत की... बेताब थे

#OpenPoetry बात...
बेइंतेहा मोहब्बत की...
बेताब थे दोनों... 
बे.जार (अप्रसन्न) थे घर वाले... 
बेज़ुबान थी महबूबा...
बद अख्तर (अभागा) था आशिक...
बद अंजाम जो था होना... 
बद ख्वाब जैसा था मंजर...
बद दुआ लगी थी किसकी...
बद नसीब थे दोनों...
बद किस्मती भी थी हावी...
बदनाम होना था बाकी...
बदमाश नहीं थे दोनों ...
बद चलन बोला था लोगों ने...
बदतर हुआ था जीना... 
बेजान हो गए थे दोनों...
बे जुर्म की सजा थी पाई...
बे शर्म था जमाना... #OpenPoetry
#OpenPoetry बात...
बेइंतेहा मोहब्बत की...
बेताब थे दोनों... 
बे.जार (अप्रसन्न) थे घर वाले... 
बेज़ुबान थी महबूबा...
बद अख्तर (अभागा) था आशिक...
बद अंजाम जो था होना... 
बद ख्वाब जैसा था मंजर...
बद दुआ लगी थी किसकी...
बद नसीब थे दोनों...
बद किस्मती भी थी हावी...
बदनाम होना था बाकी...
बदमाश नहीं थे दोनों ...
बद चलन बोला था लोगों ने...
बदतर हुआ था जीना... 
बेजान हो गए थे दोनों...
बे जुर्म की सजा थी पाई...
बे शर्म था जमाना... #OpenPoetry