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तुम मेरी कविता हो.... क्या हम दोनों एक कविता से

तुम मेरी कविता हो.... 

क्या हम दोनों एक कविता से जुदा हो सकते हैं
तुम और मैं कभी जुदा न होने के लिए मिले हैं 
मेरी कविताएँ.. जिनमें तुम्हारा जिक्र होता है, वो अमर हो चुकी हैं , मैं कल रहूंगा या नहीं, मगर कविताएँ कभी नहीं मरेगीं और न जाने कितनी सदियों तक पढ़ी जाती रहेंगी.. 
कितने होंठों से अर्ज की जाएंगी
कितने कानों से सुनी जाएंगी 
कितने ही दिलों से महसूस की जाएंगी 
कितने दिलों को धड़ाकएगीं
कितनी रूहों को तड़पाएगीं और कितने नैनों को रूलाएगीं... 
बहुत समय बाद जब मैं कहीं दूर तुम्हें महसूस करूँगा और भी बहुत से लोग होंगे जो मेरी कविताओं में तुम्हारे अक्स़  को महसूस करेंगे.. 
इस जीवन में न तुम मेरे हो और न मैं तुम्हारा  .... मगर फिर भी मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरे । 
तुम्हारे जिक्र के बिना मेरी कविता नहीं ।
तुम मेरी वो दवा हो जो कोई वैद नहीं बनाता न किसी बाजार में बिकती है  ....बस तुम्ही से मिलती है....!! तुम मेरी कविता हो.... 

क्या हम दोनों एक कविता से जुदा हो सकते हैं
तुम और मैं कभी जुदा न होने के लिए मिले हैं 
मेरी कविताएँ.. जिनमें तुम्हारा जिक्र होता है, वो अमर हो चुकी हैं , मैं कल रहूंगा या नहीं, मगर कविताएँ कभी नहीं मरेगीं और न जाने कितनी सदियों तक पढ़ी जाती रहेंगी.. 
कितने होंठों से अर्ज की जाएंगी
कितने कानों से सुनी जाएंगी 
कितने ही दिलों से महसूस की जाएंगी
तुम मेरी कविता हो.... 

क्या हम दोनों एक कविता से जुदा हो सकते हैं
तुम और मैं कभी जुदा न होने के लिए मिले हैं 
मेरी कविताएँ.. जिनमें तुम्हारा जिक्र होता है, वो अमर हो चुकी हैं , मैं कल रहूंगा या नहीं, मगर कविताएँ कभी नहीं मरेगीं और न जाने कितनी सदियों तक पढ़ी जाती रहेंगी.. 
कितने होंठों से अर्ज की जाएंगी
कितने कानों से सुनी जाएंगी 
कितने ही दिलों से महसूस की जाएंगी 
कितने दिलों को धड़ाकएगीं
कितनी रूहों को तड़पाएगीं और कितने नैनों को रूलाएगीं... 
बहुत समय बाद जब मैं कहीं दूर तुम्हें महसूस करूँगा और भी बहुत से लोग होंगे जो मेरी कविताओं में तुम्हारे अक्स़  को महसूस करेंगे.. 
इस जीवन में न तुम मेरे हो और न मैं तुम्हारा  .... मगर फिर भी मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरे । 
तुम्हारे जिक्र के बिना मेरी कविता नहीं ।
तुम मेरी वो दवा हो जो कोई वैद नहीं बनाता न किसी बाजार में बिकती है  ....बस तुम्ही से मिलती है....!! तुम मेरी कविता हो.... 

क्या हम दोनों एक कविता से जुदा हो सकते हैं
तुम और मैं कभी जुदा न होने के लिए मिले हैं 
मेरी कविताएँ.. जिनमें तुम्हारा जिक्र होता है, वो अमर हो चुकी हैं , मैं कल रहूंगा या नहीं, मगर कविताएँ कभी नहीं मरेगीं और न जाने कितनी सदियों तक पढ़ी जाती रहेंगी.. 
कितने होंठों से अर्ज की जाएंगी
कितने कानों से सुनी जाएंगी 
कितने ही दिलों से महसूस की जाएंगी