एक गांव मे एक बूढी महिला और उसके बेटे बहु रहते थे और साथ मे उनका एक नन्हा सा बालक भी था, जो उस बूढी महिला का पोता था, उसके बेटे बहु बुढ़िया को सताया करते, नौकर को निकल कर उनसे जबरन काम करवाया करते, साथ ही उन्हें रुखा -सूखा भोजन देते और हमेशा उन्हें ताना दिया करते, परन्तु जब पेंशन उठाने के दिन नजदीक आते तो उनके साथ भली भांति पेश आते, और उनकी इच्छानुसार पकवान बनाकर खिलाते, उनके लिए बुढ़िया, महज सोने की अंडे देने वाली मुर्गी थी. बुढ़िया को सब समझ मे आता परन्तु वो मजबूर थी क्युकि वो बीमारी से भी लाचार थी और न ही कहीं जाने का मार्ग था, बुढ़िया परेशान तो हमेशा रहती पर अपने पोते के साथ खेलकर उसे खूब आनन्द आता, उसका पोता कभी अपनी दूध की ग्लास उन्हें दे देता, तो कभी अपनी हाथो से दवा खिलता, और कभी उनके पैरों को प्रणाम कर, कहता -" दो न दादी मुझे आशीर्वाद,कि मैं बड़ा होकर तुम्हें, पापा की स्कूटी से घुमाने ले जाऊ", दादी खिलखिलाती, और कहती -"अले बेटा पहले तू सिख तो जा, नहीं तो दोनों गिल जायेंगे" कभी वो दादी को डांटकर पढ़ाता तो कभी चिढ़ाता, कभी वो नहीं खेलना चाहती तो कभी उनका चश्मा तो कभी उनकी लाठी छीपा देता और पूछने पर कहता - "दादी मेली, मैं नहीं कुछ भी छुपायों, और अगल आप मेले साथ खेलोगे ना तो शायद आपको वो मिल जाये जो शायद गायब हुआ है, दादी और पोते ऐसी ही शरारत करते रहते. एक दिन बुढ़िया काफ़ी बीमार थी, तो वो ऊपर की ओर देखती हुई भगवान से कह रही थी कि हे भगवान मुझे अपने पास बुला क्यू नहीं लेते, बुला लो ना प्रभु, आखिर कब सुनोगे तुम मेरी बात, तभी उनके पोते ने उनकी सारी बात सुन ली, तब उसे समझ नहीं आ रहा था की वो ऊपर देखता है तो तो भगवान गायब क्यू हो जाते है और बात भी नहीं करते, और दादी से बात करते है, तो वह सोचता है दादी से बात कर रहे ना, भगवान जी, तो वह दौड़कर दादी के सामने जाकर खड़ा होकर ऊपर निहारने लगता है,कभी वो टार्च जलाकर देखता, तो कभी दूरबीन से फिर भी भगवान नहीं दीखते, तो वो सोचता है की मैं दादी को सताता हूँ ना, इसलिए भगवान जी मुझे दिख नहीं रहे, तभी दादी उससे पूछती है, क्या देख रहा टार्च और दूरबीन से, एरोप्लेन है क्या? नहीं दादी. दादी नहीं समझ पाती की वो क्या कर रहा है, तब वो सोचता है, भवान जी देखे चाहे नहीं देखे मुझे, जैसे तुम दादी को सुन सकते है तो मुझे भी सुन सकते हो ना, फिर वो सोचता है कि यदि मैं धीरे बोला तो पता नहीं उन तक मेरी आवाज पहुंच भी पायेगी या नहीं, फिर उसकी दादी भगवान से वही कहती है, तो वह डर जाता है, कि कहीं दादी के बार -बार कहने पर भगवान जी उनकी बात मान न ले, दादी तो उनके पास चली जाएगी तो, मेले साथ खेलेगा कौन?, ये सोचकर वो झटपट तेज आवाज मे कहता है -"भवान जी मेली दादी जो भी बोली है ना, मत सुनना, वे भवान जी मत चुनना, मैं बमाशी नय करूँगा, ये सब उसके मम्मी पापा चुपके से सुन लेते है, इतना सुनकर उन्हें अपनी गलती का पछतावा होता है फिर वे अपनी माँ से माफ़ी मांग लेते है, साथ ही उनके साथ अच्छा व्यवहार रखते है #myvoice #स्टोरीज #कोट्स #मोटिवेशन