पल्लव की डायरी कल्पना अगर करे जीवन सांसो का स्पंदन है धरा पर जो मिला देखने बैभव मात पिता का अभिनन्दन है मिट्टी की कोरी काया में जो संस्कार भरे आज गर्व से कहता में उनका नन्दन हूँ लड़खड़ाते पैरों से खड़ा हुआ हूँ उन दोनों को मेरा वंदन है सफलता का राज बताऊँ तो उसमे मेरे मात पिता की दुआओं का मिला मंतर है निस्वार्थ इस धरती पर वे ही हमारे भगवन है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" निस्वार्थ इस धरती पर वे ही हमारे भगवान है