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मुसाफिर दूर का हूँ, मुझे तुम प्यार न करना मैं सब

मुसाफिर दूर का हूँ, मुझे तुम प्यार न करना 
मैं सब समझता हूँ, कभी इज़हार न करना
पत्र जल्दी जो लिखता हूं तो नफरत सी करती हो
माना नफ़रत तो करती हो, मगर तुम मुझपे मरती हो
मगर इस साल दिसम्बर में, ये पत्र दूसरा है 
वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है Mark:2  मुसाफिर

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मुसाफिर दूर का हूँ, मुझे तुम प्यार न करना 
मैं सब समझता हूँ, कभी इज़हार न करना
पत्र जल्दी जो लिखता हूं तो नफरत सी करती हो
माना नफ़रत तो करती हो, मगर तुम मुझपे मरती हो
मगर इस साल दिसम्बर में, ये पत्र दूसरा है 
वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है Mark:2  मुसाफिर

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