दस्तक दिल के दरवाजे पर आज अर्से बाद दस्तक हुई तुम्हारी चलो यूँ गर्दिश में, शिद्दतों वाली इबादत मुकम्मल हुई हमारी ये ख़्वाहिशें, अधूरे ख़्वाब और तुम्हे पाने का जुनून बेवजह तो नहीं जिस दोजख पर खड़े थे तुम्हारी तमन्ना लिए वहाँ आज भी कायम तसब्बुर है तुम्हारी मैं जो बेबश, बेख़बर और बेपरवाह था कुछ और नहीं तुम्हारी मोहब्बत का ख़ुमार था मुद्दत से मैं जिसका तलबगार था चलो मान लिया मुक़द्दर में नहीं वो आशिक़ी हमारी प्यार थी, हमराज़ थी और मेरी महताब थी तुम बेशक मेरे रूह की गुनगुनाती अल्फ़ाज़ थी तुम अधूरे रह गए हम और अधूरी रह गयी मोहब्बत हमारी जाने क्या थी मशरूफियत और क्या थी बेबशी तुम्हारी नज़र नही तुम नूर थी, चाहत नहीं फितूर थी हमारे अधूरे अफ़साने की तुम कामिल तदबीर थी खड़ा हूँ जिस दोराहे पर, क्या ये मेरी तक़दीर थी? मेरे हमनशीं, मेरे हमदम, तुम्ही कहो कुछ खता थी हमारी, या मेहेरबानी थी तुम्हारी? विश्वजीत कुमार ओझा "प्रिंस" ©Vishwajeet Ojha dastakk dastakk dastakkk dastakk #lightindark