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सोचता हूं मैं अक्सर क्या जिंदगी यही है। सब कुछ तो

सोचता हूं मैं अक्सर क्या जिंदगी यही है।
सब कुछ तो है पास पर कुछ भी नहीं
 
हैकहने को तो सारी दुनिया ही अपनी है।
पर इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं 

हैरिश्ते रह गए हैं बस नाम के दुनिया में
अपना पन अब कहीं बचा ही नहीं

 हैजीवन में उलझन ही उलझन हैं।
क्या इनका कोई हल ही नहीं 

हैयहां झूठ फरेब का जोर है हर तरह 
क्या इंसान कुछ समझता नहीं है..

©Manpreet Gurjar
  #Life  पाखी PREET (⁠ᵔ⁠ᴥ⁠ᵔ⁠) radhika Anshu writer 0