लहराें ने लहरों से थपेड़े खाएं इल्ज़ाम साहिलो के सर मढ दिया.. मढ़ने तक तो सही था, मगर किनारा किनारों से कर लिया... किनारों को भी हो गई थी मोहब्ब्त लहरों से मगर.. गुस्से में लहरों ने तबाह साहिलों को कर दिया.. 🌺🌺🌺आज की रचना थोड़ी अजीब है....कुछ सोच कर या किसी विषय पर नही है....कभी कभी मन शांत नही होता कुछ न कुछ हलचल चलती रहती है.......बस इसी हलचल को शब्दों में उतारने की कोशिश की है.. ..हो सकता है यूं ही लगे आपको....या शायद कुछ पसंद आए पर कही जोड़िएगा मत🙏🙏🙏🙏 होता है ना कभी कभी हम जानते हैं कि दूसरा हमे कितनी अहमियत देता है फिर भी खुद को बहलाने या सच न स्वीकार कर पाने के लिए खुद को एक भ्रम में डाले रखते हैं.....और जब भ्रम टूटता है तो दर्द तो होता ही है....बस इसी दर्द और दर्द के असर को लिखने की