वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि मैं परीक्षा के कक्ष में बैठा हूं। मैं समय गवा रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। मानो जैसे पूरा का पूरा दिमाग ही खाली हो गया! मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं कुछ कर पाऊंगा; और समय अपनी गति से भी तेज चले जा रहा था। एक ओर मां-बाप का डर था ! और एक ओर गुरुजनों का प्रेम था । एक ओर एक अंजाना सा चेहरा आज मुझे अपना दिख रहा था तो एक ओर मुझे अपने गुरुजनों का विश्वास ।एक ओर कुछ समझ नहीं आ रहा! लेकिन! दूसरे ही पल मेरा आत्मविश्वास जागने लगा था। गुरुजनों के प्रेम की शक्ति मुझे पुनः एक अद्भुत शक्ति का अनुभव करने लगी और फिर मैं 3 घंटे का पेपर मात्र 2 घंटों में समाप्त कर चुका था। बिना किसी क्वेश्चन को छोड़े हुए ।आज प्रेम की शक्ति जागने लगी थी, मेरी प्रेम की उर्जा का आज परीक्षा हो रहा था। आज किसी के विश्वास का इम्तिहान हो रहा था। आज का पेपर मानो जिंदगी का आखिरी पेपर ही लग रहा था । बस इतनी सी थी। ... लेखक सोनू वक्त घरी की सुयोग के साथ बीत रहा था।