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#मुख_मारने_का_काम शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते ह

#मुख_मारने_का_काम
शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते हो,
महफ़िल में मुख‌ मारने  को काम कहते हो।
वह तो अयोग्य और अशिक्षित आदमी की 
मूर्खता से मिला है,  जिसे इनाम कहते हो।
असल में मेहनत तो वही कर रहा है जिसे
तुम बार-बार निकम्मा व नाकाम कहते हो।
इसके बाद मेरी कविता कहती है निरर्थक
है जो शाम को दीपक जला राम कहते हो।।
                           ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #मुख_मारने_का_काम
शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते हो,
महफ़िल में मुख‌ मारने  को काम कहते हो।
वह तो अयोग्य और अशिक्षित आदमी की 
मूर्खता से मिला है,  जिसे इनाम कहते हो।
असल में मेहनत तो वही कर रहा है जिसे
तुम बार-बार निकम्मा व नाकाम कहते हो।
इसके बाद मेरी कविता कहती है निरर्थक
#मुख_मारने_का_काम
शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते हो,
महफ़िल में मुख‌ मारने  को काम कहते हो।
वह तो अयोग्य और अशिक्षित आदमी की 
मूर्खता से मिला है,  जिसे इनाम कहते हो।
असल में मेहनत तो वही कर रहा है जिसे
तुम बार-बार निकम्मा व नाकाम कहते हो।
इसके बाद मेरी कविता कहती है निरर्थक
है जो शाम को दीपक जला राम कहते हो।।
                           ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #मुख_मारने_का_काम
शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते हो,
महफ़िल में मुख‌ मारने  को काम कहते हो।
वह तो अयोग्य और अशिक्षित आदमी की 
मूर्खता से मिला है,  जिसे इनाम कहते हो।
असल में मेहनत तो वही कर रहा है जिसे
तुम बार-बार निकम्मा व नाकाम कहते हो।
इसके बाद मेरी कविता कहती है निरर्थक
nojotouser4262088293

Vikas Sahni

New Creator

#मुख_मारने_का_काम शाम को सुबह व सुबह को शाम कहते हो, महफ़िल में मुख‌ मारने को काम कहते हो। वह तो अयोग्य और अशिक्षित आदमी की मूर्खता से मिला है, जिसे इनाम कहते हो। असल में मेहनत तो वही कर रहा है जिसे तुम बार-बार निकम्मा व नाकाम कहते हो। इसके बाद मेरी कविता कहती है निरर्थक #Poetry