जहाँ जाओ, भीड़ ही भीड़, सड़कों पर, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, स्कूल, मंदिर, पर्यटन स्थल....कहाँ नहीं है भीड़?... और देख - देख कर दांतो तले उंगली दब ही जाती है कि कितनी जनसंख्या है देश की! गली - मोहल्ले में जाओ तो भीड़! जनसंख्या का भयंकर विस्फोट है! जो बुद्धिमान और विवेकवान है वे तो परिवार को सीमित रखते हैं और दो बच्चे... दो क्या वे तो एक बच्चे तक ही परिवार को रखने लगे हैं लेकिन उनका क्या जो कीड़े - मकोड़े की तरह रेंगते हुए जीना चाहते हैं वे ही देश में भीड़ बढ़ा रहे हैं, उनके घरों में जाओ तो वहां भी भीड़! देखा जाए तो जिनके घरों में भीड़ है उनकी ही आर्थिक हालत भी दयनीय है! जो सीमित परिवार रखते हैं वे खुशहाल जीवन जीते हैं इसलिए व्यक्तिशः तो व्यक्ति स्वयं सोचे कि वह स्वयं को और बच्चों को कैसा जीवन देना चाहता है - स्वर्ग से सुंदर या नारकीय कीड़ों सा जीवन! सरकारी स्तर पर जरूर अब कड़ा कानून बनना चाहिए P. T. O. #जनसंख्या वृद्धि #12. 07.20 #StreetNight