बारिशों के साथ उसकी देख कर अठ - खेलियां। खिल उठीं नभ में अचानक कल्पतरु की बेलियां। रक्तिम - हथेली ज्यों ही उसकी बूंद को स्पर्श कीं, निस्तेज होकर छुप गईं अम्बर कड़कती बिजलियां। अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज (पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित) #shi मुसाफिर.... यज्ञेश्वर वत्स Hariom@Kumawat...©️...🖋