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बेशक था आजाद हुआ ,सन सैंतालिस की रजनी में लेकिन अब

बेशक था आजाद हुआ ,सन सैंतालिस की रजनी में
लेकिन अबतक दहक रहा था, संत्रासों की अग्नी में

गोरों ने आजाद किया था, कालों ने था पकड़ लिया
आस्तीन के कुछ सांपों ने, पूरा भारत जकड़ लिया

आजादी का सूर्य दफन था, ऊंचे राजघरानों में
आग लगी थी भारत माता, के सारे अरमानों में

भारत माता रोज सुबह से, शाम तलक थी चीख रही
अपनी असली आजादी के, दिन-दिन सपने दीख रही

भाग्य विधाता ने सुन ली, आखिर उन करुण पुकारों की
जो अपनों से बिछड़ गए थे, उन सारे परिवारों की

राष्ट्रवाद की खूबी सारी ,भर दी उसने मोदी में
लाल सलोना भेज दिया फिर ,भारत माँ की गोदी में

बिछड़े हिन्दू परिवारों को ,पुनः मिलाने निकला था
बँटवारे ने दर्द दिए जो, उन्हें घटाने निकला था

लेकिन बातें उसकी इनको, किंचित रास नहीं आईं
ये जेहादी नस्लें देखो, फिर से साथ नहीं आईं

नेहरू गांधी के पाले, वो सांप पुनः फनकार उठे
गंगा-जमुनी तहजीबों के,देखो थप्पड़ मार उठे

बँटवारा सहकर भी घर में,इज्ज़त दी सम्मान दिया
आपस में सब भाई-भाई, कहकर इनको मान दिया

पड़ी जरूरत सँग आने की, तो औकात दिखा बैठे
भारत में दंगे भड़काकर, असली जात दिखा बैठे

जैसे सूरज के आंगन में, जुगुनू असर नहीं करते
वैसे  सिंहों  की  टोली  में, कुत्ते बसर नहीं करते

एक तीर से ही अर्जुन जब, कुरूक्षेत्र को जीत गए
देख दृश्य वह सारे कौरव, पलभर में भयभीत भए

राष्ट्रवाद के महायज्ञ का, रथ यूं ना रुकने देंगे
चंद लफंगों के आगे यह , देश नहीं झुकने देंगे

©कवि मनु बौछार #Supporting_CAA
#Supporting_CAB
#Supporting_NRC
बेशक था आजाद हुआ ,सन सैंतालिस की रजनी में
लेकिन अबतक दहक रहा था, संत्रासों की अग्नी में

गोरों ने आजाद किया था, कालों ने था पकड़ लिया
आस्तीन के कुछ सांपों ने, पूरा भारत जकड़ लिया

आजादी का सूर्य दफन था, ऊंचे राजघरानों में
आग लगी थी भारत माता, के सारे अरमानों में

भारत माता रोज सुबह से, शाम तलक थी चीख रही
अपनी असली आजादी के, दिन-दिन सपने दीख रही

भाग्य विधाता ने सुन ली, आखिर उन करुण पुकारों की
जो अपनों से बिछड़ गए थे, उन सारे परिवारों की

राष्ट्रवाद की खूबी सारी ,भर दी उसने मोदी में
लाल सलोना भेज दिया फिर ,भारत माँ की गोदी में

बिछड़े हिन्दू परिवारों को ,पुनः मिलाने निकला था
बँटवारे ने दर्द दिए जो, उन्हें घटाने निकला था

लेकिन बातें उसकी इनको, किंचित रास नहीं आईं
ये जेहादी नस्लें देखो, फिर से साथ नहीं आईं

नेहरू गांधी के पाले, वो सांप पुनः फनकार उठे
गंगा-जमुनी तहजीबों के,देखो थप्पड़ मार उठे

बँटवारा सहकर भी घर में,इज्ज़त दी सम्मान दिया
आपस में सब भाई-भाई, कहकर इनको मान दिया

पड़ी जरूरत सँग आने की, तो औकात दिखा बैठे
भारत में दंगे भड़काकर, असली जात दिखा बैठे

जैसे सूरज के आंगन में, जुगुनू असर नहीं करते
वैसे  सिंहों  की  टोली  में, कुत्ते बसर नहीं करते

एक तीर से ही अर्जुन जब, कुरूक्षेत्र को जीत गए
देख दृश्य वह सारे कौरव, पलभर में भयभीत भए

राष्ट्रवाद के महायज्ञ का, रथ यूं ना रुकने देंगे
चंद लफंगों के आगे यह , देश नहीं झुकने देंगे

©कवि मनु बौछार #Supporting_CAA
#Supporting_CAB
#Supporting_NRC