सुबह सुबह की बात थी, रात को हुई बरसात थी । दिल्ली की व सर्दी थी ,कोहरा अभी छटा नहीं थी । मेट्रो का सफर था ,भीड़ बड़ा जबरदस्त था । मुंह उसका ढका था, टोपा भी पहना था । हाथ में मोबाइल था, नजर का चस्मा उसने लगाया था । जना पहचाना सकल था , पर नजर नहीं आ रही थी । दूर मुझ से खड़ा था, चिंता में वह परा था । याद करने की कोशिश कर रहा था पर याद नहीं आ रहा था। जैसे से ही मुड़ा मेरी ओर , चेहरा नजर आया देख के उसको बचपन याद आगया । था वह मेरे बचपन का लंगोटिया यार हुई उस से मुलाकात , फिर हुई बड़ी लम्बी बात । -Azad ताहिर #Vo_karib_aaye #january #nojotoenglish #poem