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जाति अलग हो अगर प्रेम की, तो विद्वान व ज्ञानी भी

जाति अलग हो अगर प्रेम की, 
तो विद्वान व ज्ञानी भी समाज को न मंजूर।
जाति जो मिल जाए किसी  भी राह गुजरते से,
तो अनजान व कपटी भी मंजूर।।

जिसको देख समझ कर बरसों से प्रेम किया,
एक जाति के आधार पर वो बन गया कसूर,
मिल जाए तो दूल्हा अपनी जाति का ,
तो  हफ्तों में हो जाती ब्याह की तैयारियां भरपूर।

एक तरफ जिसे चाह,माना,पहचाना,
जिसने अपना सब कुछ प्रेम में त्याग दिया,
वो अछूत हो गया।
एक तरफ जिसे न सही से जाना न पहचाना,
एक उच्च जाति व कुछ झूठे रिवाजों से,
वो रिश्ता अटूट हो गया।

©Piyush Prarthi प्यार का कत्ल
जाति अलग हो अगर प्रेम की, 
तो विद्वान व ज्ञानी भी समाज को न मंजूर।
जाति जो मिल जाए किसी  भी राह गुजरते से,
तो अनजान व कपटी भी मंजूर।।

जिसको देख समझ कर बरसों से प्रेम किया,
एक जाति के आधार पर वो बन गया कसूर,
मिल जाए तो दूल्हा अपनी जाति का ,
तो  हफ्तों में हो जाती ब्याह की तैयारियां भरपूर।

एक तरफ जिसे चाह,माना,पहचाना,
जिसने अपना सब कुछ प्रेम में त्याग दिया,
वो अछूत हो गया।
एक तरफ जिसे न सही से जाना न पहचाना,
एक उच्च जाति व कुछ झूठे रिवाजों से,
वो रिश्ता अटूट हो गया।

©Piyush Prarthi प्यार का कत्ल