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ख़ुशी और ग़म हर बार मुझे ही क्यू गलत समझा जाता है क

ख़ुशी और ग़म हर बार मुझे ही क्यू गलत समझा जाता है 
क्या मै एतनी गलत ही जो मुझे हर टाइम खुशी को दे के गम का सौदा किया जाता है 
क्या मुझे जीने का कोई हक नहीं इस दुनिया में ?
क्या मै अकेली घुट घुट कर अपनी खुशियोंको
किसी और पे निछावर कर दी और मै गम अपना लू ।
काय मै इतनी बुरी हूं ?
जो मुझे जीने का कोई हक नही है khushiya or gam
ख़ुशी और ग़म हर बार मुझे ही क्यू गलत समझा जाता है 
क्या मै एतनी गलत ही जो मुझे हर टाइम खुशी को दे के गम का सौदा किया जाता है 
क्या मुझे जीने का कोई हक नहीं इस दुनिया में ?
क्या मै अकेली घुट घुट कर अपनी खुशियोंको
किसी और पे निछावर कर दी और मै गम अपना लू ।
काय मै इतनी बुरी हूं ?
जो मुझे जीने का कोई हक नही है khushiya or gam