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लफ्ज़ मग़रूर हो जाए, तो चलता है साहब! मगर मिजाज़ म

लफ्ज़ मग़रूर हो जाए, तो चलता है साहब!
मगर मिजाज़ में, गु़रुर बहुत खलता है।

©Mashariq Bahot Khalta hai.
लफ्ज़ मग़रूर हो जाए, तो चलता है साहब!
मगर मिजाज़ में, गु़रुर बहुत खलता है।

©Mashariq Bahot Khalta hai.
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Mashariq

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