शायद एक तरफ़ा मोहब्बत में इंसान निःस्वार्थ प्रेम का सही रस चख लेता है। ( read caption) शायद जुदाई का वक़्त अब नज़दीक आ रहा था। जैसे तैसे चार-पांच साल यूँ ही बीत गए थे। कभी हम ख़ूब बातें करते,कभी ख़ूब हँसते और कभी बेवजह नाराज़ हो जाते थे। जैसे हमारी उम्र बढ़ती गई, हमारे बीच मनमुटाव भी बढ़ने लगे थे। अब बातों की जगह ख़ामोशी ने ले ली थी। तेरा मुझसे दूर जाने का फैसला अब क़रीब आता नज़र आ रहा था। हर पल अब इसी सोच में दिन बीत जाता है कि वो पल कितना दर्दनाक होगा। दिसंबर की ठंड में जैसे नफ़स जम गई हो। जैसे उस पल के आगे मेरा रग रग तिलमिला जाएगा तुम्हारी एक खबर सुनकर।वो जुदाई का मंज़र,जिसके महज़ एक ख़याल से मैं सुन्न हो जाती हूँ। अगले साल का यूँ पास आना, जैसे तुमसे दूर जाने का कोई संदेशा ले आया हो। वक़्त की कगार पर मेरा दिल थम सा गया है। जैसे मेरी जान तुझ में कहीं अटकी हो आज भी।आज भी वही उम्मीद को सीने में दबोचकर,कही खो जाती हूँ। आज मेरा दिल बेचैन हो उठा है,यूँ लग रहा है कि मैं भविष्य साफ़ साफ़ देख पा रहीं हूँ,अपने सामने,आज ही इसी पल में। दिखाई दिया मुझे शादी का वो लाल जोड़ा,सिंदूर, कंगन,हाँथों में सजी दुल्हन सी मेहेंदी। देखी उसकी प्रतिमा, तो जाना बिल्कुल तेरी ही पसंद की थी। सुंदर सी परी, शक्ल से नेक दिल लगी, और सुना है,वो तुम जैसे ही घूमना पसंद करती है,बहुत बहादूर है,शायद ज़िंदगी को तुझ जैसा ही जीना जानती है। वो हूर जो सिर्फ़ तेरे लिए बनी थी। तुम जैसी। और मैं, झल्ली सी,सजने का कोई तौर तरीका न मालूम है,न सुंदर छवि और डरपोक इतनी की ज़मी पे रेंगते कीड़ो से भी डर जाऊ। पसंद वो तुम्हारी थी,बिल्कुल तुम जैसी,जैसी तुम चाहते थे। माँ को भी बख़ूबी पता था,वैसी ही कन्या ढूंढ लाई थी तेरे लिए। देख रहीं हूँ मैं, सब कुछ अब साफ़ साफ़, कि तेरे शहर आ गई हूँ। तुझसे ही मिलने। मैंने जैसे ही कदम बढ़ाएं तुझे मिलने के लिए, मैंने देखा,डोली से दुल्हन उतरी। खुशियों का माहौल चहुँओर फ़ैला हुआ था। कही पास से आवाज़ आ रही थी, देखा कि कुछ लोग नाच रहे है और मंडप की ओर बढ़ रहे।वहीं पीछे घोड़ी पर सवार,एक महाशय दिखे। फ़ूलों का एक शानदार सेहरा पहने। फूलों को कुछ हटा के देखा उसने मेरी ओर। हाँ! वो तुम ही थे। हाँ वो प्यार था मेरा, दूल्हे सा सजा,पर अपनी हूर के लिए। मैं निरंतर देखती रही उसे।वो दूल्हे का ख़याल जो अक्सर मेरे ख़्वाबों का हिस्सा था,आज वो किसी और की हक़ीक़त बनने जा रहा था। उसकी आँखों ने आज मुझे देख कर अनदेखा कर दिया था। ख़ैर! दुःख नहीं अब इस बात का कि शायद वो इसी में खुश है, मेरे बगैर, शायद किसी और के साथ।