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तन्हाई ! मेरी सच्ची साथी , रीत वफा की सदा निभाई

 तन्हाई ! मेरी सच्ची साथी ,
रीत  वफा की सदा निभाई ।
 जब मैं था  एकांत,अकेला ,
 दबे पाँव मुझ तक चली आई।।
उत्सव मे तो सभी  सरीक थे
मौका भी, दस्तूर भी ,
रुसवाई मे संग खङी थी,
यह मेरी तन्हाई  ।।
हंसी के संग था उठना बैठना 
अच्छा था याराना,
दुर्दिन मे सब छोङ के भागे ,
काम आयी केवल  तन्हाई ।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  मेरी तन्हाई

मेरी तन्हाई #कविता

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