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रंग सब भंग है पिंजरे में जब विहंग है सपने सिमटे

रंग सब भंग है 
पिंजरे में जब विहंग है 
सपने सिमटे पड़े है मका में 
आसमां की कल्पना एक जंग है 
चार लोगों का डर है बसा ,
विश्वास जो अपंग है 
क्या ढूंढता है दुनिया में तू ,
तू खुद में एक भुजंग है 
फर्श पर उमंग कहां 
बुलंदियों पर मृदंग है 
अजनबी है तू हार के वस्त्रों में ,
किया जो जीत का श्रृंगार 
काफिलों की बढ़ती तरंग है 
रंग सब भंग है 
पिंजरे मे जब विहंग है

©Nikhil bihang
रंग सब भंग है 
पिंजरे में जब विहंग है 
सपने सिमटे पड़े है मका में 
आसमां की कल्पना एक जंग है 
चार लोगों का डर है बसा ,
विश्वास जो अपंग है 
क्या ढूंढता है दुनिया में तू ,
तू खुद में एक भुजंग है 
फर्श पर उमंग कहां 
बुलंदियों पर मृदंग है 
अजनबी है तू हार के वस्त्रों में ,
किया जो जीत का श्रृंगार 
काफिलों की बढ़ती तरंग है 
रंग सब भंग है 
पिंजरे मे जब विहंग है

©Nikhil bihang