ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की मेरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने किसी ने मेरी ग़म-ख़्वारी नहीं की मेरे शेरों में क्या तासीर होती कभी मैं ने अदा-कारी नहीं की किसी मंसब किसी ओहदे की ख़ातिर कोई तदबीर बाज़ारी नहीं की बस इतनी बात पर दुनिया ख़फ़ा है के मैं ने तुझ से ग़द्दारी नहीं की..... गद्दारी नहीं की