पढ़ा लिखा निकम्मा भाग-1 मैं अपने बचपन के दोस्त से मिलने उसके घर के लिए निकला ही था कि नुक्कड़ पर चचा ने पीछे से टोक दिया, "शहर में सब कैसा चल रिया है"...पुरे गाँव में चर्चा थी कि सांप का काटा बच सकता है, किन्तु चचा का टोका...कभी नहीं. खुद को कटा हुआ, मेरा मतलब टोका हुआ जान कर मैं स्तब्ध खड़ा रह गया. तभी मुझे शाश्त्रो में दिए गए उपचार का ख्याल आया और मैंने मुड़कर चचा की तरफ मुस्कुराते हुए, उनका अभिवादन किया. किवदंती के अनुसार, इससे "जहर का असर" मेरा मतलब चचा के टोकने के प्रभाव, जिसे दुस्प्रभाव बनने में समय नहीं लगता, को कम किया जा सकता है. चाचा आगे बड़े और कुछ ही पलों में मेरे ठीक सामने खड़े हो बोले, "मैं पुछ रिया हूँ कि कहाँ जा रयी सवारी सवेरे सवेरे?" जैसे आपको नहीं बताया तो कयामत आ जाएगी, जबकि सुबह सुबह हुयी इस अप्रिय घटना, जिसे समाज घटना नहीं मुलाकात कहेगा, से मेरी सामत तो आ ही गयी थी, मैंने मन ही मन सोचा फिर चचा से बड़े ही हर्षोल्लास के साथ बोला, "और कहाँ अपने जिगरी से मिलने...$$$" मैं आगे कुछ कह पाता, चचा बीच में ही फिर से टोकते हुए बोले, "वही जिगरी ना जिसके साथ मिल कर तुम बचपन में मेरी खिड़की का कांच तोड़ रिये थे."