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#FourLinePoetry बाहरी पारदर्शिता देख ये मन विचलित

#FourLinePoetry  बाहरी पारदर्शिता देख ये मन विचलित हो जाता है,

तब सोच और सपनो के सागर में गहरे गोते लगाता है।

चमकते तारों को जैसे बरसते बादल अपनी चादर से छिपा देता है,

भटकते मुसाफिर को खुला आसमान भी कहां खान पनाह देता है।

©Kajol Prem #fourlinepoetry 
05/08/2021
#FourLinePoetry  बाहरी पारदर्शिता देख ये मन विचलित हो जाता है,

तब सोच और सपनो के सागर में गहरे गोते लगाता है।

चमकते तारों को जैसे बरसते बादल अपनी चादर से छिपा देता है,

भटकते मुसाफिर को खुला आसमान भी कहां खान पनाह देता है।

©Kajol Prem #fourlinepoetry 
05/08/2021
kajolpanatu7859

Kajol Pushap

Bronze Star
New Creator