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कलामे ग़ालिब से जब हम नशीन हुऐ हैं तभी शायरी की ज़र

कलामे ग़ालिब से जब हम नशीन हुऐ हैं
तभी शायरी की ज़र ख़ेज़ ज़मीन हुऐ हैं
जानते हैं सभी अहले अदब बख़ूबी उन्हें
नाम उनका असद उल्लाह ख़ां हैं शायर बहतरीन हुऐ हैं
सीख़ा है न जाने कितनों ने उनसे शेर कहना जिब्रान उन्हीं
के सदक़े शेर कहने लायक हम से कमीन हुऐ हैं
असीरे ग़ालिब असदुल्लाह ख़ां मिर्जा़ ग़ालिब
कलामे ग़ालिब से जब हम नशीन हुऐ हैं
तभी शायरी की ज़र ख़ेज़ ज़मीन हुऐ हैं
जानते हैं सभी अहले अदब बख़ूबी उन्हें
नाम उनका असद उल्लाह ख़ां हैं शायर बहतरीन हुऐ हैं
सीख़ा है न जाने कितनों ने उनसे शेर कहना जिब्रान उन्हीं
के सदक़े शेर कहने लायक हम से कमीन हुऐ हैं
असीरे ग़ालिब असदुल्लाह ख़ां मिर्जा़ ग़ालिब