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चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में, वापस चलते

चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 
जहां बिन तुझसे लड़े दिन ना गुजरे,
जहां बिन तेरी हँसी देखे शाम ना हो,
तेरी थाली से एक टुकड़ा लिए बिन खाना ना हो,
बिन तुझे कुछ कहे, बिन तुझसे सुने रात ना हो।
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

जरा देर से भी घर आऊँ तो, 
मेरी फ़िकर मे राह देखते रहना, और 
ऊपर से मम्मी को मेरे पर भड़काना, 
ग़र कभी गुस्सा हो पहले से मम्मी- पापा तो,
पहले ही मुझे बताना और फिर उनसे बचाना। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

जब भी कुछ छुपाऊँ मैं तुझसे तो, 
मेरी जासूसी करना, और फिर उसपे चिढ़ाना, 
ग़र पूछूंगा तेरी कोई बात तो ना बताना फिर, 
खुद ही आकर पता है कहकर सारे राज बताना। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

मैं तुझसे लड़ूँ बेवजह, बेहिसाब और बेवक्त, 
तूँ भी मुझसे लड़े बेवजह, बेहिसाब और बेवक्त, 
पर कोई और कुछ भी कहे दोनों मे किसी को, 
तो एक साथ लड़ पड़े उससे बेहिसाब बेवक्त। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

बहन रहे चाहें कितनी भी दूर हम, 
इतना तो वादा कर ले आ दोनों, 
रहें कहीं भी कभी भी एक बार, 
राखी को बचपन की तरह मनाएंगे, 
थोड़ा लड़ेंगे, झगड़ेगे पर हर साल मिलेगे। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 
जहां बिन तुझसे लड़े दिन ना गुजरे,
जहां बिन तेरी हँसी देखे शाम ना हो,
तेरी थाली से एक टुकड़ा लिए बिन खाना ना हो,
बिन तुझे कुछ कहे, बिन तुझसे सुने रात ना हो।
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

✍️विवेक कुमार शुक्ला ✍️
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 
जहां बिन तुझसे लड़े दिन ना गुजरे,
जहां बिन तेरी हँसी देखे शाम ना हो,
तेरी थाली से एक टुकड़ा लिए बिन खाना ना हो,
बिन तुझे कुछ कहे, बिन तुझसे सुने रात ना हो।
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

जरा देर से भी घर आऊँ तो, 
मेरी फ़िकर मे राह देखते रहना, और 
ऊपर से मम्मी को मेरे पर भड़काना, 
ग़र कभी गुस्सा हो पहले से मम्मी- पापा तो,
पहले ही मुझे बताना और फिर उनसे बचाना। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

जब भी कुछ छुपाऊँ मैं तुझसे तो, 
मेरी जासूसी करना, और फिर उसपे चिढ़ाना, 
ग़र पूछूंगा तेरी कोई बात तो ना बताना फिर, 
खुद ही आकर पता है कहकर सारे राज बताना। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

मैं तुझसे लड़ूँ बेवजह, बेहिसाब और बेवक्त, 
तूँ भी मुझसे लड़े बेवजह, बेहिसाब और बेवक्त, 
पर कोई और कुछ भी कहे दोनों मे किसी को, 
तो एक साथ लड़ पड़े उससे बेहिसाब बेवक्त। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

बहन रहे चाहें कितनी भी दूर हम, 
इतना तो वादा कर ले आ दोनों, 
रहें कहीं भी कभी भी एक बार, 
राखी को बचपन की तरह मनाएंगे, 
थोड़ा लड़ेंगे, झगड़ेगे पर हर साल मिलेगे। 
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 
जहां बिन तुझसे लड़े दिन ना गुजरे,
जहां बिन तेरी हँसी देखे शाम ना हो,
तेरी थाली से एक टुकड़ा लिए बिन खाना ना हो,
बिन तुझे कुछ कहे, बिन तुझसे सुने रात ना हो।
चल ना..., चल ना चलते हैं, उन दिनों में,
वापस चलते हैं, यादों की उन गलियों में। 

✍️विवेक कुमार शुक्ला ✍️