~चुपचाप~ घुट रहा है अंदर ही अंदर चुपचाप , कई दरियाओं को पी गया समंदर चुपचाप सच की भनक तो उसे भी थी मगर , खुले हाथ दफ़न हो गया सिकंदर चुपचाप उतर आता है आँखों में यकायक , वो बाँध गया था जो एक मंज़र चुपचाप न दिखता है और न सुनाई देता है , चलती है उसकी ही रज़ा , मगर चुपचाप॥ चुपचाप.!!!