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बहुत मुश्किल है खुद के वजूद का बाग़ी हो जाना और अपन

बहुत मुश्किल है खुद के वजूद का बाग़ी हो जाना
और अपनी ही जेहन में किसी का ग़ुलाम हो जाना
हाँ तुम्हारी स्मृतियों ने मेरे मन पर जमा लिया है अपना कब्जा
कुछ उसी तरह जैसे किसी विदेशी आक्रांता ने कर लिया हो
किसी मुल्क पर अधिकार और मचा दिया हो भीषण नरसंहार
जैसे कोई पोरस अपने ही दरबार मे किसी बंधनों में जकड़ा हो
बिल्कुल उसी तरह रोज़ अपने एहसासों को बंधनों में पाता हूँ
और रोज़ अपने ही हृदय में अपने ज़ज़्बातों सा कत्ल हो जाता हूँ
क्षण भर को ठहरता हूँ फिर सोचता हूँ 
क्या संवेदनाओं को मार देने से स्मृतियों को नष्ट कर सकते हैं
और क्या संवेदनाओं के कत्ल से सब कुछ पहले सा कर सकते हैं
जवाब मैं नहीं जानता मग़र एक सवाल उभरता है तुम्हारे लिए!
के जाने से पूर्व मेरी स्वतंत्रता तो दे जाती
अपनी स्मृतियों को अपने साथ ले जाती
ऐसा नहीं कि मैं इन्हें विस्मृत करने का कोई प्रयास नहीं करता
मगर अपनी स्मृतियों के ख़िलाफ़ ही मैं भगत और सुभाष नही होता
कुछ तो है जो अंदर ही अंदर अड़ जाता है
जैसे कोई मान सिंह गैरों के लिए अपनो से लड़ जाता है
और इन सबमें मेरा अंतर्मन उस राणा की तरह जीत कर भी कुछ नहीं पाता है
बस हार जाता है जब खुद का वज़ूद ही बाग़ी बन जाता है

    - क्रांति #बाग़ी #वज़ूद
बहुत मुश्किल है खुद के वजूद का बाग़ी हो जाना
और अपनी ही जेहन में किसी का ग़ुलाम हो जाना
हाँ तुम्हारी स्मृतियों ने मेरे मन पर जमा लिया है अपना कब्जा
कुछ उसी तरह जैसे किसी विदेशी आक्रांता ने कर लिया हो
किसी मुल्क पर अधिकार और मचा दिया हो भीषण नरसंहार
जैसे कोई पोरस अपने ही दरबार मे किसी बंधनों में जकड़ा हो
बिल्कुल उसी तरह रोज़ अपने एहसासों को बंधनों में पाता हूँ
और रोज़ अपने ही हृदय में अपने ज़ज़्बातों सा कत्ल हो जाता हूँ
क्षण भर को ठहरता हूँ फिर सोचता हूँ 
क्या संवेदनाओं को मार देने से स्मृतियों को नष्ट कर सकते हैं
और क्या संवेदनाओं के कत्ल से सब कुछ पहले सा कर सकते हैं
जवाब मैं नहीं जानता मग़र एक सवाल उभरता है तुम्हारे लिए!
के जाने से पूर्व मेरी स्वतंत्रता तो दे जाती
अपनी स्मृतियों को अपने साथ ले जाती
ऐसा नहीं कि मैं इन्हें विस्मृत करने का कोई प्रयास नहीं करता
मगर अपनी स्मृतियों के ख़िलाफ़ ही मैं भगत और सुभाष नही होता
कुछ तो है जो अंदर ही अंदर अड़ जाता है
जैसे कोई मान सिंह गैरों के लिए अपनो से लड़ जाता है
और इन सबमें मेरा अंतर्मन उस राणा की तरह जीत कर भी कुछ नहीं पाता है
बस हार जाता है जब खुद का वज़ूद ही बाग़ी बन जाता है

    - क्रांति #बाग़ी #वज़ूद