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वो गौरैया जो कभी मेरे आंगन में फुदकती थी इधर उधर


वो गौरैया जो कभी मेरे आंगन में फुदकती थी इधर उधर 
खो सी गई है अब,आंखों से ओझल, हो सी गई है अब
कभी जिसकी चहचहाहट सुन खुद भोर का सूरज उगता था
सुबह के सन्नाटे में वो प्यारी सी गौरैया कहीं सो सी गई है अब

मुझे याद है अब भी कि कैसे तुझसे मुलाकात हुई थी
कैसे सफल तुझे फसाने की मेरी ये वारदात हुई थी
आंगन में चंद दाने चावल के डाल दिए थे लुभाने को 
मुझे याद है कैसे मेरी नादानी से तुझे घबराहट हुई थी

इस मंज़र को याद कर होंठ मुस्कुराए तो बहुत हैं 
पर नज़रों में हल्की सी नमीं आ सी गईं है अब

इक डंडे से टोकरी को हल्का सा सहारा दे दिया था
और डोर बांधकर डंडे से अपना बचकाना जाल तैयार किया था
तू चुनती हुए दानों को टोकरी के नीचे आ गई  
मैंने कैसे झटके से डोरी खींच टोकरी को तुझ पर गिरा दिया था

बड़ा हर्षित हुआ था मैं इस सफल वारदात के बाद
पर तू यकायक इस घटनाक्रम से सहम सी गई थी तब

तब अहसास हुआ था मुझको मेरी उस नादानी का
कैसे अनजाने में तुझे भयभीत कर गया उस बचकानी का
लेकिन छोड़ने से पहले तुझसे पहचान बनाना चाहता था
तुझ पर इक छाप छोड़ना चाहता था अपनी प्रेम की निशानी का

इसीलिए तेरे पंखो को मैंने लाल रंग से रंग डाला था
बस तुझसे नाता जोड़ने की ये तरक़ीब आ सी गई थी तब

तुझे खुले आसमाँ में भेज दिया और दिल से दिल को जोड़ दिया
तू वापस मिलने आएगी इसी आस पर दिल को मोड़ दिया
तू अगले ही दिन वापस आई भोर में मुझको जगाने को
तूने प्रेम की सारी भाषाओं को अहसासों से पीछे छोड़ दिया

प्रेम के इस अप्रतिम वृतांत को शब्दों में पिरोकर
मेरे दिल में ये घटना फिर से जीवंत हो सी गई है अब 

फिर तो ये दिनचर्या मेरी रोज की हो गई थी
उसकी चहचहाहट से उठना मेरी आदत सी हो गई थी
फिर इक दिन वही हुआ जिसका दिल को बहुत ही डर था
मेरी प्यारी सी चिरैया आसमाँ में दूर कहीं  खो गई थी

इक अजीब सा था ये रिश्ता मेरे और तेरे दरमियाँ
                           पहले प्रेम की ये कहानी मेरे दिल में अमर हो सी गई है अब             #चौबेजी

वो गौरैया जो कभी मेरे आंगन में फुदकती थी इधर उधर 
खो सी गई है अब,आंखों से ओझल, हो सी गई है अब
कभी जिसकी चहचहाहट सुन खुद भोर का सूरज उगता था
सुबह के सन्नाटे में वो प्यारी सी गौरैया कहीं सो सी गई है अब

मुझे याद है अब भी कि कैसे तुझसे मुलाकात हुई थी
कैसे सफल तुझे फसाने की मेरी ये वारदात हुई थी
आंगन में चंद दाने चावल के डाल दिए थे लुभाने को 
मुझे याद है कैसे मेरी नादानी से तुझे घबराहट हुई थी

इस मंज़र को याद कर होंठ मुस्कुराए तो बहुत हैं 
पर नज़रों में हल्की सी नमीं आ सी गईं है अब

इक डंडे से टोकरी को हल्का सा सहारा दे दिया था
और डोर बांधकर डंडे से अपना बचकाना जाल तैयार किया था
तू चुनती हुए दानों को टोकरी के नीचे आ गई  
मैंने कैसे झटके से डोरी खींच टोकरी को तुझ पर गिरा दिया था

बड़ा हर्षित हुआ था मैं इस सफल वारदात के बाद
पर तू यकायक इस घटनाक्रम से सहम सी गई थी तब

तब अहसास हुआ था मुझको मेरी उस नादानी का
कैसे अनजाने में तुझे भयभीत कर गया उस बचकानी का
लेकिन छोड़ने से पहले तुझसे पहचान बनाना चाहता था
तुझ पर इक छाप छोड़ना चाहता था अपनी प्रेम की निशानी का

इसीलिए तेरे पंखो को मैंने लाल रंग से रंग डाला था
बस तुझसे नाता जोड़ने की ये तरक़ीब आ सी गई थी तब

तुझे खुले आसमाँ में भेज दिया और दिल से दिल को जोड़ दिया
तू वापस मिलने आएगी इसी आस पर दिल को मोड़ दिया
तू अगले ही दिन वापस आई भोर में मुझको जगाने को
तूने प्रेम की सारी भाषाओं को अहसासों से पीछे छोड़ दिया

प्रेम के इस अप्रतिम वृतांत को शब्दों में पिरोकर
मेरे दिल में ये घटना फिर से जीवंत हो सी गई है अब 

फिर तो ये दिनचर्या मेरी रोज की हो गई थी
उसकी चहचहाहट से उठना मेरी आदत सी हो गई थी
फिर इक दिन वही हुआ जिसका दिल को बहुत ही डर था
मेरी प्यारी सी चिरैया आसमाँ में दूर कहीं  खो गई थी

इक अजीब सा था ये रिश्ता मेरे और तेरे दरमियाँ
                           पहले प्रेम की ये कहानी मेरे दिल में अमर हो सी गई है अब             #चौबेजी