किसी पे निर्भर ना होकर भी कहीं बन्धे रहना बंदिशों के अभाव में भी वही रहना आखिर इन सब से बाहर निकलकर उड़ते रहना हर किसी के बस की बात नहीं होती। पहरा नहीं है कोई द्वार पे फिर भी ये कैसी रोक है उद्धार पे विचार है उलझे से मझधार पे संदेह है मुझको अबके इस बार किसी भय से पीड़ित अपने स्वीकार पे। आत्मनिरभरता का आजमाना जरा ज़ोर है गहरी रात नहीं है अभी दृश्य में ये उजली भोर है उत्साह का अंतर्मन में शोर है बाहरी आवरण तो बस छल है जिस पर ही सबने किया गौर है। ©shivangi pradhan #nojopoetry #Hindi #nojohindi #alfazMere #Thoughts #Smile