जरा ठहरो कहां जा रही हो आज तो वक्त दिया नहीं कल फिर बुला रही हो नाजनीन तुम कितनी मासूम हो तुम्हारी बेबसी देखकर मैं तुम्हे रुला ही नहीं सकता तुम हो कि इशरत देकर हमें रुला रही हो इशरत(भाषा -फारसी)-राहत/मौज मस्ती/आनंद/भोग विलास,नाजनीन-सुंदरी बेदम शायर आयुष कुमार गौतम की कलम से तुम हो कि इशरत देकर हमें रुला रहे हो