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मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है और मुझमें बस्ता है

मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है

और 

मुझमें बस्ता है कौन

कभी मैं खुद में ग़ालिब हूँ ,कभी गुस्से में जौन।

Arz-ए-Sayed मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है

और 

मुझमें बस्ता है कौन

कभी मैं खुद में ग़ालिब हूँ ,कभी गुस्से में जौन।
मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है

और 

मुझमें बस्ता है कौन

कभी मैं खुद में ग़ालिब हूँ ,कभी गुस्से में जौन।

Arz-ए-Sayed मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है

और 

मुझमें बस्ता है कौन

कभी मैं खुद में ग़ालिब हूँ ,कभी गुस्से में जौन।

मेरे अन्दरू एक शायर ही तो है और मुझमें बस्ता है कौन कभी मैं खुद में ग़ालिब हूँ ,कभी गुस्से में जौन।