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एक लाश झूलती है वो,कानून की दिवारों पे तड़पती है,

एक लाश

झूलती है वो,कानून की दिवारों पे तड़पती है,
बची है जो इंसानियत,इंसानों में बिलखती है,
सवाल भी मत करना,यह पूछना मत कि "क्यों"
सवालों से डरती है दुनिया,मामला मज़हबी है,

उसने छुआ ही तो था,चूमने वाली किताब को,
मारने के बाद जायज़ ठहराते हो अपराध को,
उस पवित्र किताब को खोल कर भी तो पढ लेते,
साधू ने सत ना देखा,देखा तो देखा जात को,

चलो मान लिया उसने कोई एसा गुनाह किया,
हाथ काट कर,पैर काट कर तुम ने क्या किया?
इस पग पे नतमस्तक पूरा भारत जहाँ होता है,
उस पग को सर पे रख कर,कैसे जफ़ा किया?

गुरुद्वारे के सामने आ कर कौन नहीं झुकता है?
यही है वो द्वार जहाँ कोई  जात नहीं पूछता है,
जहाँ हर तबके का इंसान एक साथ बैठा होता है,
फिर आखिर क्यों?यही सवाल मुझे चुभता है । मुझे मालूम है कुछ लोगों को बुरा लग सकता है, पर सिर्फ इसलिए मैं चुप नहीं रह सकता कि कुछ लोगों को खुश रखूं और खास कर तब जब यह इंसानियत पे घात हो.. सिंघू बॉडर पे हुई दर्दनाक घटना बेहद दर्दनाक व आश्चर्यचकित करने वाली है। पर इस हत्या के होने के बाद उसे सही कहने वाले लोगों ने मेरे दिल को ज्यादा ठेस पहुंचाई और कविता को लिखने का भी यही कारण है । उम्मीद है लोग मेरी वेदना समझेंगे...। अगर आप धार्मिक राजनीतिक मुद्दों मे नहीं पडना चाहते या बेहद ही संवेदनशील बहसों का हिस्सा नहीं बनना चाहते  तो मेरी विनती है इस कविता को ना पढें..।।


एक लाश

झूलती है वो,कानून की दिवारों पे तड़पती है,
बची है जो इंसानियत,इंसानों में बिलखती है,
सवाल भी मत करना,यह पूछना मत कि "क्यों"
एक लाश

झूलती है वो,कानून की दिवारों पे तड़पती है,
बची है जो इंसानियत,इंसानों में बिलखती है,
सवाल भी मत करना,यह पूछना मत कि "क्यों"
सवालों से डरती है दुनिया,मामला मज़हबी है,

उसने छुआ ही तो था,चूमने वाली किताब को,
मारने के बाद जायज़ ठहराते हो अपराध को,
उस पवित्र किताब को खोल कर भी तो पढ लेते,
साधू ने सत ना देखा,देखा तो देखा जात को,

चलो मान लिया उसने कोई एसा गुनाह किया,
हाथ काट कर,पैर काट कर तुम ने क्या किया?
इस पग पे नतमस्तक पूरा भारत जहाँ होता है,
उस पग को सर पे रख कर,कैसे जफ़ा किया?

गुरुद्वारे के सामने आ कर कौन नहीं झुकता है?
यही है वो द्वार जहाँ कोई  जात नहीं पूछता है,
जहाँ हर तबके का इंसान एक साथ बैठा होता है,
फिर आखिर क्यों?यही सवाल मुझे चुभता है । मुझे मालूम है कुछ लोगों को बुरा लग सकता है, पर सिर्फ इसलिए मैं चुप नहीं रह सकता कि कुछ लोगों को खुश रखूं और खास कर तब जब यह इंसानियत पे घात हो.. सिंघू बॉडर पे हुई दर्दनाक घटना बेहद दर्दनाक व आश्चर्यचकित करने वाली है। पर इस हत्या के होने के बाद उसे सही कहने वाले लोगों ने मेरे दिल को ज्यादा ठेस पहुंचाई और कविता को लिखने का भी यही कारण है । उम्मीद है लोग मेरी वेदना समझेंगे...। अगर आप धार्मिक राजनीतिक मुद्दों मे नहीं पडना चाहते या बेहद ही संवेदनशील बहसों का हिस्सा नहीं बनना चाहते  तो मेरी विनती है इस कविता को ना पढें..।।


एक लाश

झूलती है वो,कानून की दिवारों पे तड़पती है,
बची है जो इंसानियत,इंसानों में बिलखती है,
सवाल भी मत करना,यह पूछना मत कि "क्यों"
namitraturi9359

Namit Raturi

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