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# ख़लल पड़ता है (Khalal padta hai | Hindi कविता

ख़लल पड़ता है (Khalal padta hai) Shayari/ Ghazal/ Poem by Rahat Indori (राहत इंदौरी) || SOHBAT

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है 

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में 
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है

ख़लल पड़ता है (Khalal padta hai) Shayari/ Ghazal/ Poem by Rahat Indori (राहत इंदौरी) || SOHBAT रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है #rahatindori #कविता #rahatindoribestshayari

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