आँसू
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आँसू
कल की ही बात लगती है जब अंजलि अपने माँ-बाप का घर छोड़ राजेश से शादी कर लखनऊ उसके घर आई थी। कुछ ही पल में सबकी लाडली बन गयी थी। सब को उसकी फ़िक्र रहती थी उसको क्या पसंद है क्या नहीं। अंजलि की ननद माला उसकी भी शादी कुछ दिन बाद बनारस में हो गई थी। दोनों अपने-अपने घर में खुश थी। अब शादी को ५ साल बीत चुके थे और एक दिन अचानक अंजलि के घर से फ़ोन कॉल आया के उसकी माँ की तब्यत ख़राब है। माँ-बाप की एकलौती बेटी आखिर क्या करती सारी ज़िम्मेदारियाँ संभालने को वो अपने मायके आगरा चली गयी। अभी माँ का ख़याल रखते करते हुए एक हफ्ता ही बीता था के सास प्रेमा ने वापस बुलवा लिया। अपने मन को मार अंजलि लखनऊ वापस आ गयी। पर मन तो वही अपनी माँ की फ़िक्र में उलझा रहता था। पर अब वो पहले जैसे दिन कहा जो शादी के बाद थे जब सब उसकी सोचते थे उसकी फ़िक्र करते थे। अब तो अंजलि के सिर पर तो जिम्मेदारियों का बोझ था। सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ कर बस घर के काम में लगी रहेती थी। एक दिन अचानक उसकी जिंदगी में भूचाल आ गया जब अंजलि को पता चला के उसकी माँ इस दुनिया में को छोड़ के चली गयी है। उसने प्रेमा से कई दफा कहा के उसको आगरा जाने दे पर प्रेमा को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। तभी रोते हुए अंजलि ने अपनी प्रेमा से कह दिया के अगर ऐसी हालत माला की होती तो क्या तब भी यही निर्णय होता। इसपर प्रेमा ने बहुत खरी खोटी सुनाई ‘के तू तो चाहती ही है के मैं मर जाऊं तो तुझे घर में राज करने को मिले तुझे तो मुझसे नफरत है सास जो हूँ, माँ होती तो थोड़ी ऐसे बोलती।’ पर अंजलि की बदकिस्मती तो ऐसी थी के उसका साथ ही नहीं छोड़ रही थी। एक महीने बाद ही प्रेमा की तब्यत ख़राब हो गयी। देवर और पति तो काम पर रहते ससुर की भी उम्र हो चुकी थी तो वो भी ज्यादा समय लेट कर ही गुजारते थे। माँ की तो सेवा नहीं कर पायी पर अब सास की सेवा में सारा दिन गुज़र रहा था। दो दिन बाद प्रेमा ने राजेश से माला को बुलाने को कहा पर अब समय ने अब प्रेमा को आईना दिखाने की ठान रखी थ। माला प्रेमा के पास आ तो गयी पर दो दिन बाद ही अपने घर चली गयी और जाते जाते अपनी माँ से कह गयी।
माँ अब बनारस से लखनऊ बार बार आना मुस्किल होता है, और इनको काम से छुट्टी लेनी पड़ती है। और सास भी बार-बार आने पर नाराज़ होती है। इसलिए मैं अब जल्दी नहीं आ पाऊँगी। और वैसे भी यहाँ भाभी तो है ही तुम्हारा ध्यान रखने के लिए। माला के जाने के बाद प्रेमा तो जैसे पत्थर की मूरत बन गई थी। माला की कही बात बार-बार उसके कानों में गूंज रही थी। और सोचती रही के एक तरफ घर की बहू है जिसको मैंने उसकी माँ को आखरी बार देखने तक नहीं भेजा, न उसकी माँ की स्थिति समझी न अपनी बहू की और एक तरफ मेरी खुद की बेटी है जो ऐसे शब्दों के तीर चला के गई है की दिल चीर के रख दिया। आज प्रेमा को इस बात का एहसास हो गया था के बहू तो हमेशा सास को माँ मानती है बस सास इस बात को स्वीकार्य नहीं करती के ये बहू नहीं बेटी है। थोड़ी देर बाद जब अंजलि प्रेमा के पास आई तो प्रेमा पहली बार अंजलि से लिपट के रोई और आँखों से आंसुओ की गंगा बहती रही।