दीपक में अग़र नूर ना होता अन्धेर नगरी में सुरूर ना होता फूलों में अग़र कली ना होती मोहब्बत काँटों में पली ना होती वृक्षों में अग़र छाया ना होती मानव तन पर काया ना होती समुद्र किनारे जो लहर ना होती हर एक प्यासे में क़हर ना होती धागे से ड़ोर अग़र जुड़ी ना होती मोती की माला कभी मुड़ी ना होती जीवन में अग़र दुःख ना होता मिट्टी का पुतला कभी ख़ुश ना होता ईश्क़ में अग़र जज़्बात ना होता मेरे जैसा शख़्स बर्बाद ना होता ©Naresh kumar #अग़र #Nature