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दीपक में अग़र नूर ना होता अन्धेर नगरी में सुरूर ना

दीपक में अग़र नूर ना होता
अन्धेर नगरी में सुरूर ना होता
फूलों में अग़र कली ना होती
मोहब्बत काँटों में पली ना होती
वृक्षों में अग़र छाया ना होती
मानव तन पर काया ना होती
समुद्र किनारे जो लहर ना होती
हर एक प्यासे में क़हर ना होती
धागे से ड़ोर अग़र जुड़ी ना होती
मोती की माला कभी मुड़ी ना होती
जीवन में अग़र दुःख ना होता
मिट्टी का पुतला कभी ख़ुश ना होता
ईश्क़ में अग़र जज़्बात ना होता
मेरे जैसा शख़्स बर्बाद ना होता

©Naresh kumar #अग़र

#Nature
दीपक में अग़र नूर ना होता
अन्धेर नगरी में सुरूर ना होता
फूलों में अग़र कली ना होती
मोहब्बत काँटों में पली ना होती
वृक्षों में अग़र छाया ना होती
मानव तन पर काया ना होती
समुद्र किनारे जो लहर ना होती
हर एक प्यासे में क़हर ना होती
धागे से ड़ोर अग़र जुड़ी ना होती
मोती की माला कभी मुड़ी ना होती
जीवन में अग़र दुःख ना होता
मिट्टी का पुतला कभी ख़ुश ना होता
ईश्क़ में अग़र जज़्बात ना होता
मेरे जैसा शख़्स बर्बाद ना होता

©Naresh kumar #अग़र

#Nature